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उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से तबाही मची हुई है। राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक का तंत्र राहत एवं बचाव कार्य में लगा हुआ है। सबकी पहली कोशिश है कि जान-माल के नुकसान को कम से कम किया जाए। एनडीआरएफ, आईटीबीपी और एयरफोर्स की टीम लगातार काम कर रही हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चमोली जिले के तपोवन इलाके में पहुंच गए हैं और वर्तमान स्थिति की जायजा ले रहे हैं। एनटीपीसी की साइट से अभी तक कुछ शवों को आईटीबीपी ने बरामद किया है और 300 से अधिक लोगों के मौत की आशंका है। यहां बताना जरूरी है कि भू-वैज्ञानिकों ने करीब 8 महीने पहले ऐसी आपदा को लेकर आगाह किया था। अगर उस समय इस पर कार्रवाई हुई होती तो शायद इस घटना से हम लोगों को बचा सकते थे।

देहरादून में स्थित वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिछले साल जून-जुलाई के महीने में एक अध्ययन के जरिए जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदियों के प्रवाह को रोकने और उससे बनने वाली झील के खतरों को लेकर चेतावनी जारी की थी।

2019 में क्षेत्र में ग्लेशियर से नदियों के प्रवाह को रोकने संबंधी शोध आइस डैम, आउटबस्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनिटी ऑफ ग्लेशियर में सेटेलाइट इमेजरी, डिजीटल मॉडल, ब्रिटिशकालीन दस्तावेज, क्षेत्रीय अध्ययन की मदद से वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट जारी की थी। इस दौरान इस इलाके में कुल 146 लेक आउटबस्ट की घटनाओं का पता लगाकर उसकी विवेचना की गई थी। शोध में पाया गया था कि हिमालय क्षेत्र की लगभग सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।

वहीं पीओके वाले काराकोरम क्षेत्र में कुछ ग्लेशियर में बर्फ की मात्रा बढ़ रही है। इस कारण ये ग्लेशियर विशेष अंतराल पर आगे बढ़कर नदियों का मार्ग अवरुद्ध कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से की बर्फ तेजी से ग्लेशियर के निचले हिस्से (थूथन-स्नाउट) की ओर आती है।

भारत की श्योक नदी के ऊपरी हिस्से में मौजूद कुमदन समूह के ग्लेशियरों में विशेषकर चोंग कुमदन ने 1920 के दौरान नदी का रास्ता कई बार रोका। इससे उस दौरान झील के टूटने की कई घटनाएं हुई। 2020 में क्यागर, खुरदोपीन व सिसपर ग्लेशियर ने काराकोरम की नदियों के मार्ग रोक झील बनाई है। इन झीलों के एकाएक फटने से पीओके समेत भारत के कश्मीर वाले हिस्से में जानमाल की काफी क्षति हो चुकी है।

इस शोध को डॉ राकेश भाम्बरी, डॉ अमित कुमार, डॉ अक्षय वर्मा और डॉ समीर तिवारी ने तैयार किया था। वैज्ञानिकों का ये शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल ग्लोबल एंड प्लेनेट्री चेंज में प्रकाशित हुआ था। जाने-माने भूगोलवेत्ता प्रो केनिथ हेविट ने भी इस शोध पत्र में अपना योगदान दिया था।