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भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों का पीक आ चुका है? क्या अगले साल की शुरुआत तक इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है?

भारत के शीर्ष वैज्ञानिकों का एक समूह ऐसा ही मानता है. उनका नया मैथमैटिकल मॉडल दिखाता है कि भारत ने सितंबर में ही कोरोना संक्रमण के मामलों का पीक पार कर लिया था और इसे अगले साल फरवरी तक इसे नियंत्रित किया जा सकता है. पीक वो स्थिति है जिसके बाद मामलों की संख्या घटनी शुरू होती है.

ऐसे सभी मॉडल मानकर चलते हैं कि लोग आगे भी मास्क पहनते रहेंगे, भीड़-भाड़ वाली जगहों पर नहीं जाएंगे, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे और नियमित रूप से हाथ धोएंगे.

भारत में अब तक कोरोना वायरस के 75 लाख मामले आ चुके हैं और 11,400 लोगों की मौत हो चुकी है. हालांकि, पूरी दुनिया में वायरस से होने वाली मौतों का केवल 10% हिस्सा भारत में है. यहां कोरोना वायरस से होने वाली मृत्यु दर 2 प्रतिशत से नीचे है जो दुनिया में सबसे कम है.

भारत में सितंबर मध्य तक पीक की स्थिति बन गई थी. उस समय यहां 10 लाख से ज़्यादा एक्टिव मामले हो चुके थे. तब से भारत में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार घट रहे हैं.

पिछले हफ़्ते तक भारत में हर दिन औसतन 62,000 मामले आए और 784 मौतें हुईं. कई राज्यों में कोविड-19 के कारण रोजाना होने वाली मौतों में भी कमी आ रही है.

लेकिन, भारत में अब त्योहारों का मौसम है जब लोग एक-दूसरे से खुलकर मिलते-जुलते हैं. ऐसे में एक भी सुपरस्प्रेडर और लोगों के मिलने-जुलने में तेज़ी दो हफ़्ते में पूरी सूरत बदल सकते हैं.

वैज्ञानिकों ने मामलों में अचानक तेज़ी आने की चेतावनी दी है. उनका कहना है कि अगर लोग कोरोना वायरस से सुरक्षा के उपाय अपनाने छोड़ देंगे तो अक्टूबर में 26 लाख मामलों के साथ पीक आ सकता है.

अधिकतर एपिडेमियोलॉजिस्ट मानते हैं कि एक और पीक ज़रूर आएगा. साथ ही उत्तर भारत में स्मॉग से भरी सर्दियों में कोरोना संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी होगी.

वे कहते हैं कि संक्रमण के मामलों और मौतों में आ रही गिरावट एक आशाजनक संकेत है लेकिन यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि महामारी ख़त्म हो रही है.

डॉक्टर मुखर्जी मानती हैं कि प्रदूषण के कारण सर्दियों में मौत के मामले बढ़ सकते हैं. प्रदूषण से लोगों को श्वसन संबंधी समस्याएं ज़्यादा होती हैं.