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जैसा कि आप सब जानते हैं कि कल यानी वृहस्पतिवार 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार है। यह हिंदूओं के एक बड़े त्योहारों मे से एक माना जाता है. इसी दिन से सूर्य का उत्तरायण भी होता है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने और खाने की परंपरा है। जो कि इस त्योहार का सबसे विशेष रूप है। इसी कारण इस पर्व को ‘खिचड़ी’ पर्व भी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन खिचड़ी क्यों खाई जाती है? इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता है।

बता दें कि मकर संक्रांति के दिन खाई जाने वाली यह खिचड़ी देश के हर हिस्से में अलग-अलग तरीके से बनाई और खाई जाती है. कहीं कहीं सिर्फ चावल और मूंग की दाल वाली सादा खिचड़ी बनाई जाती है तो कहीं कहीं इसमें कई तरह की सब्जियां जैसे आलू, मटर, गोभी, टमाटर आदि डालकर बनाई जाती है. आपको आश्चर्य होगा कि अपने देश में कुल मिलाकर 60 से भी ज्यादा तरह से ये खिचड़ी बनाई जाती है।

आपको बता दें कि प्राचीन काल से ही इस खिचड़ी बनाने के पीछे ग्रहों का शांत होना माना जाता है. जहां पर चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है वहीं काली दाल को शनि औऱ सब्जियों को बुध ग्रह के प्रतीक के रूप में माना जाता है.

हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से सभी ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है.

अब बात करते हैं खिचड़ी के धार्मिक महत्व की. तो आइए जानते हैं कि आखिर क्यों खाई जाती है खिचड़ी? और इसके पीछे क्या है धार्मिक मान्यता?

बता दें कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने के पीछे जो मान्यता है वह शिव के अवतार महायोगी बाबा गोरखनाथ से जुड़ी हुई है. ऐसी मान्यता है कि अलाउद्दीन खिलजी के भारत पर आक्रमण के समय नाथ सम्प्रदाय के योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण अपने लिए भोजन तक बनाने का समय नहीं मिल पाता था. इस कारण ये योगी अक्सर भूखे ही रह जाते थे जिस वजह से दिन प्रति दिन कमजोर होते जा रहे थे.

दिन प्रति दिन अपने योगियों की बिगड़ती हुई हालत को देख महायोगी बाबा गोरखनाथ ने इस समस्या का एक आसान सा समाधान निकालते हुए सभी योगियों को दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. ऐसा देखा गया कि यह व्यंजन कम वक्त में तैयार होता और बहुत ही पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वादिष्ट भी था और इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी. इसलिए नाथ योगियों को यह व्यंजन बहुत अधिक पसंद आया. इस प्रकार महायोगी बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम ‘खिचड़ी’ रखा. इस प्रकार इस व्यंजन का नाम खिचड़ी पड़ा।

हुआ यूं कि झटपट तैयार होने वाली इस खिचड़ी से नाथ पंथ के सभी योगियों की भोजन की समस्या का समाधान हो गया और इसके साथ ही वे आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के बढ़ते हुए आतंक को दूर करने में भी सफल हुए. अलाउद्दीन खिलजी से मुक्ति मिलने के कारण ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध मठ गोरखनाथ मन्दिर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है.

बता दें कि इस दिन गोरखपुर के प्रसिद्व गोरखनाथ मंदिर में एक महीने तक चलने वाला भव्य खिचड़ी मेला आरंभ होता है. पूरे एक माह तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है.

प्राचीन काल से ही मकर संक्राति के दिन बाबा गोरखनाथ को चढ़ाने के लिए सबसे पहली खिचड़ी नेपाल के राज परिवार से लायी जाती है। गोरखपुर के गोरखनाथ मन्दिर में खिचड़ी चढ़ाने के लिए दूर दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्त्री पुरुष आते हैं।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहाँ एक माह तक चलने वाले हिंदुओं के इस खिचड़ी मेले में अधिकांश दुकानें मुस्लिम समुदाय के लोगों की ही होती हैं।

मालूम हो कि यूपी के वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ भी गोरखपुर के इसी गोरखनाथ मठ के पीठाधीश्वर हैं।