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यह पहली बार नहीं है जब आदित्यनाथ को रैलियों में भीड़ खींचने और भाजपा के लिए वोटरों को रिझाने के काम में लगाया गया है लेकिन इस बार बहुत कम नेताओं को राज्य के बाहर (बिहार) इस तरह चुनावी सभाओं में लोगों को रिझाने के लिए ड्यूटी पर लगाया गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आलोचकों और विरोधियों को हताश करने वाले कारकों में सबसे प्रमुख उनकी आकर्षक और चमकदार लोकप्रिय छवि है। लाख विरोध के बावजूद उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है. इसमें उनके साथ अब दूसरे हमराही- भगवा सुपरस्टार और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. 48 वर्षीय योगी आदित्यनाथ इकलौते मुख्यमंत्री हैं जिन्हें बिहार चुनावों में भाजपा का प्रचार करने के लिए चुना गया है.

बिहार में पहले चरण के चुनाव (28 अक्टूबर) से पहले योगी अकेले 20 जनसभाओं को संबोधित करने वाले हैं. उनके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार चरणों में कुल 12 चुनावी सभाओं को संबोधित करने वाले हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी 15 रैलियां करने वाले हैं. योगी आदित्यनाथ की ही आज तीन-तीन रैलियां हैं.

यह स्पष्ट तथ्य है कि बिहार चुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की डिमांड ज्यादा है, इसमें न केवल उनकी पार्टी के उम्मीदवार, बल्कि सहयोगी जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार भी शामिल हैं, जिनका अनुरोध है कि योगी उनके निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करें.

आदित्यनाथ ऊंची जाति के ठाकुर यानी राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. भाजपा और जेडीयू के बीच गठबंधन में इस बात पर सहमति है कि भाजपा उच्च जाति के वोटरों को साधेगी, जबकि जेडीयू अति पिछड़े मतदाताओं को लामबंद करने की कोशिश करेगी. आदित्यनाथ पर जोर थोड़ा हटकर है, क्योंकि अब तक यह माना जाता था कि जाति के प्रति जागरूक बिहार में योगी केवल सिर्फ उच्च जाति के मतदाताओं को ही लुभा सकते थे.

जेडीयू के एक उम्मीदवार ने बताया, “यह एक कठिन चुनाव है. राज्य में प्रवासियों का गुस्सा उबाल पर है. ऐसे में अगर पीएम मोदी और सीएम योगी भी चुनावी सभाओं को संबोधित करते हैं तो लोगों को यह लगेगा कि इस गठबंधन के पास ऐसे बड़े और शक्तिशाली नेताओं की एक अच्छी शक्ति है.”

हालांकि, वह उम्मीदवार अपने पार्टी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो चौथी बार सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, पर चुप्पी साधे रहता है. इस चुनाव में अंदरखाने- कई लोग जो भाजपा के लिए एकतरफा सोच रखते हैं- इस बात की चर्चा है कि नीतीश कुमार अपने करियर में अभी तक की सबसे खराब सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं और यह भाजपा ही है जो उनकी नैया पार लगा सकती है.

यह उन लाखों प्रवासियों के लिए एक सुदूर और दूर दृष्टिकोण का नतीजा है जो कोरोना वायरस संकट की वजह से बिना किसी योजना और प्रभावी प्रबंधन के लागू किए गए लॉकडाउन में बिहार लौटने के लिए बेताब थे, और ऐसा नहीं करने की नीतीश कुमार की अपील को खारिज कर चुके थे.